28 June, 2021

इन दिनों | कविता | डॉ शरद सिंह

इन दिनों
       - डॉ शरद सिंह

मेज पर रखी
अपनी हथेली पर
देखती हूं
ठहरी हुई धूप
गोल, चमकीले धब्बे-सी

देर तक देखती हूं तो
चौंधिया जाती हैं आंखें
अकुलाकर 
मूंदती हूं आंखें
दिखते हैं
काले-काले धब्बे

बदल जाता है धूप का चरित्र
आंखों में समाते ही

सोचती हूं तभी-
यानी इंसान 
धूप से भी तेज है
चरित्र बदलने में
बदल जाता है वह तो
पलक झपकते ही

धूप को पढ़ती हुई
जान रही हूं 
अपनी ज़िम्मेदारियों को
ज़रूरतों को
और
इंसान के प्रकारों को
इन दिनों।
   ---------

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#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry 

12 comments:

  1. पग पग पर बदलते रहने की प्रवृति है इन्सान की. न जाने कितने ही प्रकार हो सकते हैं इन्सान के. हम तो बस उतने ही जान पाते हैं जितनों से पाला पड़ा. बहुत खुबसुरत रचना.
    नई पोस्ट पुलिस के सिपाही से by पाश
    ब्लॉग अच्छा लगे तो फॉलो जरुर करना ताकि आपको नई पोस्ट की जानकारी मिलती रहे

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    1. हार्दिक धन्यवाद रोहितास जी

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (३०-0६-२०२१) को
    'जी करता है किसी से मिल करके देखें'(चर्चा अंक- ४१११)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. चर्चामंच में मेरी कविता शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार अनीता सैनी जी 🙏

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  3. इन्सानी फितरत पर गहन अध्ययन ।
    मनन करने को उकसाती पंक्तियाँ
    सुंदर सृजन।
    सस्नेह।

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    1. हार्दिक धन्यवाद कुसुम कोठारी जी 🙏

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  4. सोचती हूं तभी-
    यानी इंसान
    धूप से भी तेज है
    चरित्र बदलने में
    बदल जाता है वह तो
    पलक झपकते ही
    बहुत ही बेहतरीन रचना आदरणीया

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🙏

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  5. वाह!!!!
    सोचती हूं तभी-
    यानी इंसान
    धूप से भी तेज है
    चरित्र बदलने में
    बदल जाता है वह तो
    पलक झपकते ही

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🙏

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  6. वाह !कितना सुंदर भाव,गूढ़ चिंतन।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🙏

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