26 June, 2021

धर्म और प्रेम | कविता | डॉ शरद सिंह

धर्म और प्रेम
        - डॉ शरद सिंह

उसके मन ने
कहा उससे
प्रेम करो

किससे
इंसान से?
नहीं-नहीं
लोग क्या कहेंगे...

और चुन लिया उसने
पाषाण-मूर्ति को
प्रेम के लिए

प्रशंसा करते हैं लोग
उसकी
वह मुस्कुराती
अपने भीतर की
रिक्तता छिपाती 
जी रही है
लौकिक और अलौकिक के
द्वंद्व में फंसी
कहे-सुने जाने से
भयभीत

अरे, कोई समझाए 
उस पगली को
जहां भय हो
वहां
न होता है धर्म
और न प्रेम।
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14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी कविता को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार यशोदा अग्रवाल जी 🙏

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
    'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ )
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. मेरी कविता को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभा दिगम्बर नासवा जी 🙏

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  3. और चुन लिया उसने
    पाषाण-मूर्ति को
    प्रेम के लिए....
    एक नए तरह की सुंदर अनुभूति लिए इस रचना हेतु साधुवाद। ।।।

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    1. हार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम सिन्हा जी 🙏

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  4. जीवनकी सच्चाई कह दी आपने,बेहतरीन रचना शरद जी,

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  5. वह मुस्कुराती
    अपने भीतर की
    रिक्तता छिपाती
    जी रही है
    लौकिक और अलौकिक के
    द्वंद्व में फंसी
    कहे-सुने जाने से
    भयभीत----बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां है

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  6. ये भी कहते हैं-
    भय बिन होत न प्रीत 😊

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  7. बहुत ही सुंदर सृजन।
    मन को छूते भाव।
    सादर

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  8. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  9. अद्भुत! पाषाण से प्रेम वो भी लोक भय से ।
    गहनता लिए हृदय स्पर्शी सृजन।
    अभिनव।

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  10. अरे, कोई समझाए
    उस पगली को
    जहां भय हो
    वहां
    न होता है धर्म
    और न प्रेम।
    बहुत ही सुन्दर... हृदयस्पर्शी सृजन।

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