09 June, 2021

उदासी | कविता | डॉ शरद सिंह

उदासी
     - डॉ शरद सिंह

कहने को एक शब्द है
उदासी

लेकिन इस शब्द के भीतर
है एक आदिम गुफा
जहां पुकारने पर
लौटती हैं
अपनी ही ध्वनियां
अपने कानों तक
एक कंपा देने वाली
अनुगूंज के साथ

इस शब्द के भीतर 
हैं रेल की ऐसी पटरियां
जो अब काम नहीं आतीं
जिन पर नहीं गुज़रती
कोई रेल
बेलिहाज़ वनस्पतियों के बीच दबे
स्लीपर्स 
साथ छोड़ने लगते हैं
पटरियों का
बेजान पटरियां सिसक भी नहीं पातीं

इस शब्द के भीतर 
है अबूझ सन्नाटा
शोर की भीड़ में भी
एक जानी-पहचानी ध्वनि को
ढूंढ पाने में असमर्थ 
सन्नाटा
किसी पागलपन की हद तक
उपजा हुआ सन्नाटा
निगल सकता है 
हरेक शब्द को
सिवा इस शब्द के

इस शब्द के भीतर 
है कांच की तरह टूटे हुए
ख़्वाब की किरचें
जो लहूलुहान कर देती हैं
एहसास के
हाथों को, पैरों को
बल्कि समूचे जिस्म को
लहू रिसता है बूंद-बूंद
आंसू बन कर
और देता है जिस्म के
ज़िन्दा रहने का सबूत

कैसे कहूं कि उदासी क्या है?
       --------------

#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry 

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 जून 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    ReplyDelete
  2. सच ..... उदासी शब्द जितना कहना सरल है समझना उतना ही कठिन है .

    ReplyDelete
  3. इस शब्द के भीतर
    है कांच की तरह टूटे हुए
    ख़्वाब की किरचें
    जो लहूलुहान कर देती हैं---गहन रचना...।

    ReplyDelete
  4. निष्पत्ति न पाने वाली अतृप्त तृषा है उदासी।

    ReplyDelete
  5. उदासी एक अंधेरे कमरे में उस चीज़ को ढूँढने का नाम है जो वहाँ कभी थी ही नहीं, इसलिए इससे जितना जल्दी छुटकारा पा लें उतना ही बेहतर है

    ReplyDelete
  6. "इस शब्द के भीतर
    हैं रेल की ऐसी पटरियां
    जो अब काम नहीं आतीं
    जिन पर नहीं गुज़रती
    कोई रेल
    बेलिहाज़ वनस्पतियों के बीच दबे
    स्लीपर्स
    साथ छोड़ने लगते हैं
    पटरियों का
    बेजान पटरियां सिसक भी नहीं पातीं"- उदासी के बहाने एक अनूठा बिम्ब .. और ..
    "लहू रिसता है बूंद-बूंद
    आंसू बन कर
    और देता है जिस्म के
    ज़िन्दा रहने का सबूत" - एक अतुल्य साहित्य-शिल्प ...

    ReplyDelete
  7. अद्भुत!
    शरद जी सच उदासी एक शब्द नहीं है ,आतर्नाद है सन्नाटे की चीख है,एक अदीढ़ घाव है।
    अप्रतिम सृजन।

    ReplyDelete