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26 June, 2021

धर्म और प्रेम | कविता | डॉ शरद सिंह

धर्म और प्रेम
        - डॉ शरद सिंह

उसके मन ने
कहा उससे
प्रेम करो

किससे
इंसान से?
नहीं-नहीं
लोग क्या कहेंगे...

और चुन लिया उसने
पाषाण-मूर्ति को
प्रेम के लिए

प्रशंसा करते हैं लोग
उसकी
वह मुस्कुराती
अपने भीतर की
रिक्तता छिपाती 
जी रही है
लौकिक और अलौकिक के
द्वंद्व में फंसी
कहे-सुने जाने से
भयभीत

अरे, कोई समझाए 
उस पगली को
जहां भय हो
वहां
न होता है धर्म
और न प्रेम।
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