29 May, 2021

सीने में समुद्र | कविता | डॉ शरद सिंह

सीने में समुद्र
           - डॉ. शरद सिंह
एक समुद्र दुख का
हहराता रहता है सीने में
टकराती हैं लहरें तट से
फिर चली आती हैं
रेत पर दूर तक
बिछा जाती हैं -
सीप, घोंघे और शंख
जिनमें रखे होते हैं
यादों के मोती,
प्रारब्ध के वलय
और पवित्र ध्वनियां
प्रेम की, अपनत्व की, 
जीवन के सपनों की
बेशक़, सुंदर बहुत सुंदर
पर 
होते हैं मृत
सीप, घोंघे और शंख
जिन्हें फेंक  देता है समुद्र
गहरे पानी से बाहर उलीच कर
उलीचने का यह क्रम 
नहीं होता कभी ख़त्म
सीने में रहते हैं शेष
अनंत जीवाश्म
जब तक देह में 
रहती है धड़कन
तब तक हहराता है
सीने में समुद्र
और उलीचता रहता है
निर्जीव पदार्थों को
यूं भी, उसका उलीचा जीवन
कभी जीवित नहीं रहता देर तक
दम तोड़ देता है छटपटा कर
जमने लगती है गाद (सिल्ट)
मगर न थमा है समुद्र
न रुकी हैं लहरें
किसी गाद से
न चाहते हुए भी
जीना पड़ता है 
जीवाश्मों के साथ ही।
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4 comments:

  1. वैसे मृत अवशेष समुद्र की गोद में जितने भी हो, वो इतना विशाल और जीवन से भरा हुआ है, की उसके पास समय ही नहीं होगा की अवशेषों पर बेवजह ध्यान दे! हाँ, ये बात भी है की जब थम के कुछ देर बैठता होगा समुद्र, तब याद आ जाती होगी उसको इन मृत स्मृतियों की!

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    1. हार्दिक धन्यवाद भावना वरुण जी 🙏

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  2. सीने में रहते हैं शेष
    अनंत जीवाश्म
    जब तक देह में
    रहती है धड़कन
    तब तक हहराता है
    सीने में समुद्र ।

    ये तो जीवन भर की बात हो गाईऐ । कितना दर्द उमड़ आया है आपके लेखन में ।
    इस दर्द से हाथ पकड़ कर आपको बाहर भी नहीं निकाल सकती । बस कह ही सकती हूँ कि खुद को संभालिये ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🙏

      निरन्तर कोशिश कर रही हूं ख़ुद को सम्हालने की...आप सबका अपनत्व सबसे बड़ा संबल है...

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