11 May, 2021

उसे क्या ? | कविता | डॉ शरद सिंह

उसे क्या ?
      - डॉ शरद सिंह

बुझ गई 
सूरज की एक किरण
टूट गया एक तारा
बिखर गया एक घर

तो क्या?
मृत्यु है साश्वत
इसलिए बन जाओ दार्शनिक
और
मत पूछो कारण मृत्यु का 
मृत्यु टहलती है इनदिनों
अस्पतालों के आईसीयू वार्डों में
फेफड़ों से ऑक्सीजन सोखती हुई
प्राणरक्षक दवाओं को हराती हुई
जीने की उम्मीदों को तड़पाती हुई
उसे क्या
जो सिर्फ़ बची अकेली छोटी बहन
उसे क्या
जो सिर्फ़ बचे बूढ़े दादा और नन्हें पोते
उसे क्या
जो सिर्फ़ बचे अनाथ बच्चे
उसे क्या .....
क्या 'सिस्टम' से  मिलीभगत है उसकी भी?
सुना है किस्सा कि 
एक उलूक-दम्पत्ती ने धन्यवाद दिया था 
तैमूरलंग को 
कि वह जब तक है उजड़ते रहेंगे गांव
और बसते रहेंगे उलूकों के घर...
अब न युद्ध है और न तैमूरलंग
फिर भी मृत्यु ने फैला दिए हैं पंजे
गांवों तक
सुविधा नहीं, सुरक्षा नहीं, चिकित्सा नहीं
तो क्या?
मृत्यु को अच्छे लगते हैं शोकगीत
वह तो गाएगी, 
भले ही फट जाए धरती का कलेजा
उसे क्या....
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#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
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18 comments:

  1. आपने ठीक कहा शरद जी। मृत्यु को तो शोकगीत ही अच्छे लगते हैं, इसलिए वह तो गाएगी, उसे क्या? लेकिन मृत्यु से जूझने के लिए हम लोगों को ही 'हमें क्या?' की मानसिकता त्याग कर सभी को अपना समझना होगा; सभी के दुख जानने, समझने, बांटने और दूर करने के प्रयास करने होंगे। मौजूदा माहौल में जो कि ख़ौफ़ज़दा और ग़मज़दा दोनों ही करने वाला है, हमारे लिए कोई भी बेगाना नहीं होना चाहिए। जिसके लिए जो भी अपने स्तर पर हम कर सकें, हम अवश्य करें। और मैं समझ सकता हूँ कि आपको अपने इस दर्द से जो कि आपके हर लफ़्ज़ में छलक-छलक जाता है, उबरने में बहुत वक़्त लगेगा। हौसला रखिए। जो हो गया, उसे लौटाया नहीं जा सकता। सिर्फ़ बिछुड़ने वालों की यादों को ही संजोया जा सकता है।

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    1. जितेंद्र माथुर जी, पीड़ा कलेजे को मथ रही है...हिम्मत देने के लिए धन्यवाद 🙏

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  2. बिल्कुल सही। आपके शोक गीत में अपनी संवेदना का स्वर समर्पित करता हूँ।🙏🙏🙏

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    1. हार्दिक आभार विश्वमोहन जी 🙏

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  4. निशब्द हूं इस आक्रांत स्वर के पीछे छिपी पीड़ा और असहस्यता की अनुभूति करके। आपके साथ हमारी समस्त संवेदनाएं और स्नेह है शरद जी। आपके पास ना होते हुए भी आत्मा की उपस्थिति आपके ही आसपास है वर्षा जी के जाने के बाद। आपको हिम्मत मिले वही दुआ है। ये शोक गीत आँखें नम कर गया।

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    1. धन्यवाद रेणु जी, कोशिश कर रही हूं सम्हलने की...नामुमकिन नहीं पर बहुत कठिन है...

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  5. निःशब्द हूँ आपके शब्दों पर ... मन की पीड़ा को लिखा है आपने ...

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    1. दिगम्बर नासवा जी यही तो प्रारब्ध है...
      आंसू-आंसू पीना है
      यादों के संग जीना है

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  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (११ -०५ -२०२१) को 'कुछ दिनों के लिए टीवी पर बंद कर दीजिए'(चर्चा अंक ४०६३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता सैनी जी 🙏

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  7. आपके मन की पीड़ा अथाह है शरद जी जिसे शब्दों में ढाला है आपने । सांत्वना के लिए शब्दों की कमी पड़ती है और पढ़ते समय अश्रु बूंद छलक पड़ती हैं।

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  8. शब्दों में बह जाए मन का शोक और विषाद, रह गई है शेष बस एक मधुर याद। मार्मिक रचना, आपकी प्रिय बहन अपने गीतों में सदा ही आपके व सबके साथ हैं

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  9. शब्द-शब्द में पीड़ा है,ये पीड़ा आज सिर्फ हमारी नहीं अनगिनत लोगो की है,जो चले गए उन्हें लौटा नहीं सकते,मगर जो है उन्हें सहेजने और सुरक्षित रखने का प्रयास निरंतर करते रहना ही हमारा कर्तव्य है,आपकी वेदना बांटी नहीं जा सकती बस आपके दुःख में साथ होने के लिए आश्वस्त कर सकते हैं। जितेंद्र जी की कही बातों से मैं पूर्णतः सहमत हूँ "हमें क्या" इस सोच को यदि नहीं त्यागा गया तो विनाश लीला अभी आगे और बड़ा मुँह खोल के तैयार है,परमात्मा आपको इस दुःख से निकलने की शक्ति दे

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  10. धैर्य रखें। ईश्वरीय इच्छा के आगे हम बौने हो जाते हैं।

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  11. आपके दर्द, आपकी पीड़ा, आपकी वेदना को हम सब की संवेदनाएं मिल कर भी कम नहीं कर सकतीं ! कहते हैं कि दुःख बांटने से कम होता है, पता नहीं ! अब तो प्रभु से यही विनती है कि वह आपको संबल प्रदान करे !

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  12. हर घर का यही हाल है,अब धैर्य रखने के अलावा कुछ नहीं कर सकते, उनकी यादें ही जीवित रहेगी

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  13. गहनतम। मन में बहुत कुछ है जिसे अभी अभिव्यक्त होना है...।

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