24 May, 2021

गुनहगार | कविता | डॉ शरद सिंह

गुनहगार
      - डॉ शरद सिंह

सुना है
हुआ करते थे
कस्तूरी मृग
जिनकी नाभि में होता था
इत्र
वह इत्र ही बना अभिशाप
न रहे कस्तूरी मृग
और न इत्र

सुना है
हुआ करते थे
लम्बे दांत वाले हाथी
हज़ारों की संख्या में
दांत ही बन गया जंजाल
अब कुछ सौ बचे हैं
दांतों सहित

सुना है
हुआ करते थे
सुनहरी खाल वाले शेर
बड़ी तादाद में
वह खाल ही बन गई काल
अब बचे हैं
संकटग्रस्त जीवों की
श्रेणी में

कुछ समय बाद
हम कहेंगे
बक्सवाहा के जंगलों में थे हीरे
वे हीरे नहीं साबित हुए शुभ
मानवता के लिए
अब न हीरे बचे हैं
और न जंगल

दरअसल,
कस्तूरी मृग नहीं था अभिशप्त
हाथीदांत नहीं था जंजाल
खाल नहीं थी काल
हीरे नहीं थे अशुभ
हमने इन्हें खोया
क्यों कि हम में थे कायर
क्यों कि हम में थे स्वार्थी
क्यों कि हम में थे लालची
क्यों कि हम में थे
प्रकृति के हत्यारे
और गुनाहगार
आने वाली पीढ़ी के।
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