एक हंसी
- डॉ शरद सिंह
जाने कब लौटेगी
वह हंसी
जो चली गई है तुम्हारे साथ
नहीं होगी तुम्हारी वापसी
तो नहीं लौटेगी
हंसी भी
हंसने का अभिनय
सीख रही हूं
धीरे-धीरे
क्यों कि
किसी को भी नहीं भाता
मेरे रोने का स्वर
भला कौन रखना चाहेगा
दुख से नाता
ख़ुशी गुदगुदाती है सबको
सबको हक़ है
ख़ुश रहने का
दुख और दुखी को ठुकराने का
अगर रखना है संवाद
ख़ुशहाल लोगों से
तो हंसना होगा मुझे भी
एक हंसी,
दिखावटी ही सही।
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बेहद सुन्दर, संवेदनशील रचना ....
ReplyDeleteअगर रखना है संवाद
ख़ुशहाल लोगों से
तो हंसना होगा मुझे भी
एक हंसी,
दिखावटी ही सही।
हार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी 🙏
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