- डॉ शरद सिंह
जब दुख बड़ा होता है
तो बौने हो जाते हैं शब्द
इतने बौने
कि नहीं पकड़ पाते हैं
दुख की उंगली
सीने पर हिमालय-सा बोझ
ओढ़ाने लगता है अवसाद की चादर
आंसू धोने लगते हैं
सुख के निशानों को
तब
उठाने लगते हैं सिर अनेक प्रश्न -
जीना अब किसके लिए
जीना अब क्यों
क्यों भटकना एक अदद
फैमिली पेंशन के लिए
क्यों लगाना दफ़्तरों के चक्कर
क्यों विश्वास करना किसी घोषणा का
क्यों चुकाना टैक्स दुनियाभर के
क्यों उम्मीद करना कि कोई
पोंछेगा आंसू आकर
क्यों ख़्वाब देखना कि कोई
देगा साथ जीवन भर
जबकि
साया भी साथ छोड़ देता है
अंधेरा घिरने पर।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 23 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी कविता को "पांच लिंकों का आनन्द" में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार यशोदा अग्रवाल जी 🙏
Deleteसवालों के समंदर में गलती से अगर डूब जाए इंसान तो निकल पाना अपने आप में एक जद्दोजहद है! यही उधेड़बुन कब अवसाद की शक्ल में बदल जाए पता ही नहीं चलता! इसलिए मानसिक स्वास्थ पर जागरूकता बेहद ज़रूरी है! अब तो फिर भी लोग समझने लगे हैं पर भ्रांतिया बहुत सी अब भी है इस मुद्दे पर! बात करने से और सुनने से ही आगे बढ़ेगी
ReplyDeleteजी, भावना वरुण जी, हार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteजिन बातों को कभी सोचा भी नहीं होगा वही जीवन में उतर आई हैं ।
ReplyDeleteशरद जी , अपना भी ख्याल रखिये ।
जी, संगीता स्वरूप जी, बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
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