Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
छपे हुए शब्द
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छपी हुई किताबें
नहीं हैं कम्प्यूटर
कि गिरने लगें उसके अक्षर
किसी वायरस के कारण
पीले पड़ने और टूटने के बाद भी
सहेजे रहते हैं पन्ने
किताबों की आत्मा को
जैसे मिस्र के रेगिस्तानों में खड़े पिरामिड
कच्छ के खारे पानी में डूबी द्वारका
या फिर
दिल के सबसे सुरक्षित कोने में
ठहरी किसी की याद
स्थाई रहते हैं छपे हुए शब्द
मन में बसी किसी अमिट स्मृति की तरह।
- डॉ शरद सिंह
#SharadSingh #Poetry #MyPoetry
#मेरीकविताए_शरदसिंह
#मिस्र #किताबें #द्वारका #दिल #आत्मा
#कम्प्यूटर #वायरस #याद #स्मृति
सहेजे रहते हैं पन्ने
किताबों की आत्मा को
जैसे मिस्र के रेगिस्तानों में खड़े पिरामिड
कच्छ के खारे पानी में डूबी द्वारका
या फिर
दिल के सबसे सुरक्षित कोने में
ठहरी किसी की याद
स्थाई रहते हैं छपे हुए शब्द
मन में बसी किसी अमिट स्मृति की तरह।
- डॉ शरद सिंह
#SharadSingh #Poetry #MyPoetry
#मेरीकविताए_शरदसिंह
#मिस्र #किताबें #द्वारका #दिल #आत्मा
#कम्प्यूटर #वायरस #याद #स्मृति
true ..
ReplyDeleteThanks Rajnish ji
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