03 June, 2025

कविता | अंधेरा प्रेम का | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अंधेरा प्रेम का
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अंधेरा स्पर्श को जीता है
दृश्य को नहीं
दृश्य का पहाड़ा
पढ़ती हुई दुनिया
उलझी रहती है विवादों में
आंख मूंद कर
हासिल किए गए
अंधेरे से
जाग उठती है कुण्डलिनी
बिना किसी बीजमंत्र के
मिट जाते हैं सारे 
मानसिक क्लेश 
और विवाद
यदि वह 
पवित्र अंधेरा हो
योग का, ध्यान का
या प्रेम का
एक अलौकिक स्पर्श की भांति।
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