18 June, 2025

कविता | पुराना गोपन प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता 
पुराना गोपन प्रेम
     - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

आलमारी के 
सबसे ऊपरी तल्ले में 
रखे कीमती
पर न पहने जाने वाले
कपड़ों में
कभी-कभी 
जरूरी हो जाता है
फिनायल की 
गोलियां रखना
नहीं तो 
बंद अलमारी की सीलन
अपने पांव फैला लेती है 
कपड़ों की तहों में

उन तहों के बीच 
 कुछ यादें 
मिल जाती हैं अचानक
भीग जाता है मन
छूते ही 
पुराने रुमाल में लिपटे 
कागज की तहों में
कुछ रूमानी शब्दों को
 जो है अब बेमानी

गोया खुद ही छुप गया हो 
कपड़ों की तहों के बीच
अतीत की गर्माहट
सियाही की सरसराहट लिए
एक किताब में दबने से
आई हुई मोड़ों में
वर्षों से रह रहा है  
सब की दृष्टि से छुप कर 
पुराना गोपन प्रेम
इसीलिए तो आज तक  
फाड़ा नहीं जा सका
निर्जीव-सा किंतु स्पंदित
वह कागज का टुकड़ा

विषाक्त फिनायल की 
गोलियों के साथ
दिन, सप्ताह, वर्ष
व्यतीत करते हुए 
जीवित है आज भी
क्योंकि 
प्रेम कभी मरता 
जीता रहता है 
नितांत गोपनीयता के साथ
व्यक्ति की अंतिम सांस तक।
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