01 June, 2025

कविता | बिना प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

बिना प्रेम
   - डॉ (सुश्री) शरद सिंह   

अगले पल के 
भविष्य को भी
जान लेना चाहता
हर कोई
क्या होगा
परीक्षा का रिजल्ट
पैकेज मिलेगा या नहीं
घर बसेगा या नहीं
मकान बनेगा या नहीं
पर 
कोई नहीं पढ़वाता
हथेली की लकीरों में प्रेम
और न पूछता है
भाग्य बांचने वाले
मिट्ठू से
प्रेम की संभावना,
जबकि बिना प्रेम
निरर्थक ही तो हैं
बाकी सब
यहां तक कि
ये दुनिया और
लंबी आयु भी।
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