एक प्रेम कथा
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
निर्जन अरण्य में
अर्द्ध रात्रि के
पूर्ण चंद्र की
चमकीली रोशनी में
तैरती मंद समीर
जब छूती है
उस पेड़ के तने को
जिस पर
दोपहर की
कुनकुनी धूप में
कुछ गायों सहित
राह भटके
अनपढ़ चरवाहे ने
उकेरा था एक दिल
स्पर्श करते ही
वह हृदय-आरेख
बज उठती है
सन्नाटे की बांसुरी
गूंज उठती है
एक प्रेम कथा
उस अरण्य में
किसी पवित्र
मंत्रोच्चार की तरह।
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