02 June, 2025

कविता | प्रेम ने छुआ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

प्रेम ने छुआ 
   - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

दृष्टि बदल जाए
अर्थात / दृष्टिकोण ही
सब कुछ देखने का
निविड़ अंधकार में
दिखे दीपक की लौ
जेठ की तपती दुपहरी में
छाया मिले
सजल बादल की
और
बिना बारिश
उगे इन्द्रधनुष
ठिठुरते जाड़े में
सुलगे अदृश्य अलाव
बुरा न लगे
किसी भी बात का
तो समझो कि
प्रेम ने छुआ है
हौले से
कांधे को।
यही तो लगा होगा
शकुंतला और दुष्यंत
सस्सी और पुन्नू को भी।           
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