20 May, 2025

कविता | कुछ लोग | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कुछ लोग
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जिन हाथों से 
फिसल रही ज़िंदगी
हर दिन
उन्हीं से
रिश्तों को बिसात बना कर
चलते हैं दुर्भावनाओं के मोहरे
बड़े फ़ख़्र से

कुछ लोग नहीं जानते 
कि क्या खो रहे हैं वे!
          - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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