बिकाऊ
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रोज बंधती
रोज टूटती
है उम्मीद
हाथ खाली हों
तो ख़्वाब सच नहीं होते
इस बिकाऊ दुनिया में
सब कुछ बिकाऊ है
सबसे ज़्यादा
इंसान और रिश्ते।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 20 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सही कहा
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