वह नहीं कर सकता प्रेम
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
जो आसमान में चमकते
तारों को नहीं देखता
जो चांद को घटते-बढ़ते
महसूस नहीं करता
जो शीतल हवा में
पत्तों के डोलने
या आंधी में
पूरे पेड़ के
हिल जाने को
नहीं देख पाता
जो कभी नहीं सुनता
चिड़ियों की आवाज़ें
जल धाराओं की ध्वनियां
जिसकी दृष्टि से परे है
फूल का खिलना या
तितली का पंख फैलाना
जो नहीं समझ पाता
खेत और मेहनत
रोटी और भूख का समीकरण
वह नहीं कर सकता
कभी भी, किसी से भी,
कैसा भी प्रेम।
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