14 May, 2025

ग़ज़ल | आजकल | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल/ आजकल
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ज़िंदगी  लगती  उदासी  आजकल
आस्था लगती धुआं-सी आजकल

मित्रता के नाम पर धोखा-फ़रेब
बात कहने को जरा सी आजकल  

कंदराएं अब  भली   लगने  लगीं
हो गया मन आदिवासी आजकल

निर्जला व्रत कह दिया हमने मगर 
आत्मा तक है प्यासी आजकल

यूं 'शरद' का मन बहुत ही खिन्न है
हर हंसी  है  सप्रयासी आजकल
..........................
#शायरी #ग़ज़ल #डॉसुश्रीशरदसिंह 
#DrMissSharadSingh #Shayari #ghazal #shyarilovers #shayariofdrmisssharadsingh

No comments:

Post a Comment