क्या कहूं ?
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सदा उसी प्रेम ने
मेरी ज़िंदगी का
रास्ता क्यों काटा
जिसकी न तो रीढ़ थी
न गहराई
न विश्वास
न समर्पण
न निःस्वार्थता
लेकिन मैं नहीं कहूंगी
उसे काली बिल्ली
क्योंकि बिल्लियां
जानबूझकर रास्ता नहीं काटतीं,
फिर क्या कहूं
उस प्रेम को?
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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