अर्ज़ है -
चंद लम्हे को सम्हलने देता।
दो क़दम साथ तो चलने देता।
स्याह मावस में चांद खिल उठता
ख़्वाब से ख़्वाब बदलने देता।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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