अर्ज़ है -
रात दी है, चराग़ भी देते
ये अंधेरा बहुत सताता है
ज़िन्दगी में कभी-कभी कोई
बन के हमदर्द क्यूं रुलाता है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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