13 June, 2023

शायरी | बन के हमदर्द | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है -
रात  दी  है,  चराग़  भी देते
ये  अंधेरा  बहुत   सताता है
ज़िन्दगी में कभी-कभी कोई
बन के हमदर्द क्यूं रुलाता है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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