25 May, 2021

एक हंसी | कविता | डॉ शरद सिंह

एक हंसी
     - डॉ शरद सिंह

जाने कब लौटेगी 
वह हंसी
जो चली गई है तुम्हारे साथ
नहीं होगी तुम्हारी वापसी
तो नहीं लौटेगी
हंसी भी

हंसने का अभिनय
सीख रही हूं
धीरे-धीरे
क्यों कि 
किसी को भी नहीं भाता
मेरे रोने का स्वर

भला कौन रखना चाहेगा
दुख से नाता
ख़ुशी गुदगुदाती है सबको
सबको हक़ है
ख़ुश रहने का
दुख और दुखी को ठुकराने का

अगर रखना है संवाद
ख़ुशहाल लोगों से
तो हंसना होगा मुझे भी
एक हंसी, 
दिखावटी ही सही।
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2 comments:

  1. बेहद सुन्दर, संवेदनशील रचना ....
    अगर रखना है संवाद
    ख़ुशहाल लोगों से
    तो हंसना होगा मुझे भी
    एक हंसी,
    दिखावटी ही सही।

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    1. हार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी 🙏

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