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| Dr (Miss) Sharad Singh |
काश, पूछता कोई मुझसे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
काश, पूछता कोई मुझसे, सुख-दुख में हूं, कैसी हूं?
जैसे पहले खुश रहती थी, क्या मैं अब भी वैसी हूं?
भीड़ भरी दुनिया में मेरा एकाकीपन मुझे सम्हाले
कोलाहल की सरिता बहती, जिसमें मैं ख़ामोशी हूं।
मेरी चादर, मेरे बिस्तर, मेरे सपनों में सिलवट है
लम्बी काली रातों में ज्यों, मैं इक नींद ज़रा-सी हूं।
अगर सीखना है तो सीखे, कोई उससे नज़र फेरना
पहले तो कहता था मुझसे, अच्छी लगती हूं जैसी हूं।
जो दावा करता था पहले ‘शरद’ हृदय को पढ़लेने का
आज वही कहता है मुझसे, शतप्रतिशत मैं ही दोषी हूं।
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)
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भीड़ भरी दुनिया में मेरा एकाकीपन मुझे सम्हाले
ReplyDeleteकोलाहल की सरिता बहती, जिसमें मैं ख़ामोशी हूं।
वाह, बहुत ख़ूब ...
हार्दिक धन्यवाद वर्षा दी 🌹🙏🌹
Deleteजो दावा करता था पहले ‘शरद’ हृदय को पढ़लेने का
ReplyDeleteआज वही कहता है मुझसे, शतप्रतिशत मैं ही दोषी हूं।..वाह!
ये ही वो बात है, जो अखर जाती है
कि तुम हर हाल में सही, मैं हर हालात की दोषी हूँ..
बहुत धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
अनीता सैनी जी,
Deleteचर्चा मंच में मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति ... अति सुन्दर ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अमृता जी 🌹🙏🌹
Deleteनमस्कार शरद जी, हृदय पढ़ने का ''दावा '' करने वाले ही तो दोष ढूंढ़ पाते हैं ताकि बताया जा सके कि कमी उनमें नहीं हममें है और वो साफ बच निकलते हैं..बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अलकनंदा जी 🙏🌹🙏
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteओंकार जी हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
Deleteअद्भुत !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद गगन शर्मा जी 🌹🙏🌹
Deleteकाश, पूछता कोई मुझसे, सुख-दुख में हूं, कैसी हूं?
ReplyDeleteजैसे पहले खुश रहती थी, क्या मैं अब भी वैसी हूं?
वाह !! बहुत खूब शरद जी
हार्दिक धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी 🌹🙏🌹
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