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Dr (Miss) Sharad Singh |
काश, पूछता कोई मुझसे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
काश, पूछता कोई मुझसे, सुख-दुख में हूं, कैसी हूं?
जैसे पहले खुश रहती थी, क्या मैं अब भी वैसी हूं?
भीड़ भरी दुनिया में मेरा एकाकीपन मुझे सम्हाले
कोलाहल की सरिता बहती, जिसमें मैं ख़ामोशी हूं।
मेरी चादर, मेरे बिस्तर, मेरे सपनों में सिलवट है
लम्बी काली रातों में ज्यों, मैं इक नींद ज़रा-सी हूं।
अगर सीखना है तो सीखे, कोई उससे नज़र फेरना
पहले तो कहता था मुझसे, अच्छी लगती हूं जैसी हूं।
जो दावा करता था पहले ‘शरद’ हृदय को पढ़लेने का
आज वही कहता है मुझसे, शतप्रतिशत मैं ही दोषी हूं।
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)
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