कभी घर नहीं मिला
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
छप्पर नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला।
मानो यक़ीन, मुझको कभी घर नहीं मिला।
जिसमें लिखा सकूं मैं रपट, खोए चैन की
पूरे शहर में एक भी दफ़्तर नहीं मिला।
आंखों की झील में हैं कई कश्तियां बंधीं
उतरे जो पार, कोई मुसाफ़िर नहीं मिला।
पिछले पहर की धूप भी कानों में कह गई
जब-जब किया तलाश, वो घर पर नहीं मिला।
उठने लगी हैं उंगलियां, जब से हरेक पर
पैरों में तब से एक भी झांझर नहीं मिला।
अकसर मिली है धूप मुझे राह में ‘शरद’
राही तो मुझसे एक भी आ कर नहीं मिला।
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)
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अकसर मिली है धूप मुझे राह में ‘शरद’
ReplyDeleteराही तो मुझसे एक भी आ कर नहीं मिला।
वाह..बहुत खूबसूरत शेर..
बहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है यह शरद जी आपने ।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹
Deleteआंखों की झील में हैं कई कश्तियां बंधीं
ReplyDeleteउतरे जो पार, कोई मुसाफ़िर नहीं मिला ।
वाह , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹
Delete
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-02-2021) को
"कुनकुनी सी धूप ने भी बात अब मन की कही है।" (चर्चा अंक- 3982) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
मीना भारद्वाज जी,
Deleteचर्चा मंच में मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
चर्चा मंच पर अपनी रचना को देखना सदैव सुखकर लगता है। आपको हार्दिक धन्यवाद🌹 🙏🌹
अति सुन्दर सृजन एवं भाव ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अमृता तन्मय जी 🌹🙏🌹
Deleteसुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुमन जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह!गज़ब का सृजन।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक धन्यवाद अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹
Deleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया ओंकार जी 🌹🙏🌹
Deleteमन में गहरे तक उतरती ग़ज़ल शरद जी ,हर शेर खास हर शेर उम्दा।
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन।
दिली शुक्रिया कुसुम कोठारी जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय गजल
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आलोक सिन्हा जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शांतनु सान्याल जी 🌹🙏🌹
Deleteउठने लगी हैं उंगलियां, जब से हरेक पर
ReplyDeleteपैरों में तब से एक भी झांझर नहीं मिला।
वाह !!एक-एक शेर लाजबाब,सादर नमन शरद जी
बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना.
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