Dr (Miss) Sharad Singh |
कविता
प्रेम
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
प्रेम
एक शब्द नहीं
ध्वनि नहीं
लिपि नहीं
प्रेम
अनुभूति है
किसी को जानने की
अपना मानने की
एक आत्मिक
अनवरत उत्सव की तरह
स्वप्न और आकांक्षा से परिपूर्ण
प्रेम
देह नहीं
वासना नहीं
एक संवेग है-
देह के भीतर
पर
देह से परे।
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प्रेम
ReplyDeleteएक संवेग है-
बहुत सुंदर
हार्दिक धन्यवाद मनोज कायल जी 🌹🙏🌹
Deleteप्रेम को परिभाषित करती सुन्दर कृति ।
ReplyDeleteदिल से धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹
Deleteप्रेम को परिपूर्ण करती अनोखी रचना..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteबड़ी अच्छी कविता है आपकी शरद जी । अंतिम दस शब्द तो कालजयी हैं । सच यही तो है कि - प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं, एक ख़ामोशी है - सुनती है, कहा करती है ।
ReplyDeleteआपकी समीक्षात्मक आत्मीय टिप्पणी के लिए आभारी हूं जितेन्द्र माथुर जी !!!
ReplyDeleteआपको हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
आदरणीय / प्रिय,
ReplyDeleteकृपया इस लिंक पर पधारें... इसमें आपके दोहे भी शामिल हैं। धन्यवाद 🙏
दोहाकारों की दृष्टि में वसंत
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
प्रेम
ReplyDeleteदेह नहीं
वासना नहीं
एक संवेग है-
देह के भीतर
पर
देह से परे। बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय भाव
सुन्दर कृति ।
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