15 February, 2021

प्रेम | कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh

कविता


प्रेम

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


प्रेम

एक शब्द नहीं

ध्वनि नहीं

लिपि नहीं


प्रेम

अनुभूति है

किसी को जानने की

अपना मानने की

एक आत्मिक 

अनवरत उत्सव की तरह

स्वप्न और आकांक्षा से परिपूर्ण


प्रेम

देह नहीं

वासना नहीं

एक संवेग है-

देह के भीतर

पर

देह से परे।

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11 comments:

  1. प्रेम
    एक संवेग है-

    बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक धन्यवाद मनोज कायल जी 🌹🙏🌹

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  2. प्रेम को परिभाषित करती सुन्दर कृति ।

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    1. दिल से धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹

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  3. प्रेम को परिपूर्ण करती अनोखी रचना..

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹

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  4. बड़ी अच्छी कविता है आपकी शरद जी । अंतिम दस शब्द तो कालजयी हैं । सच यही तो है कि - प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं, एक ख़ामोशी है - सुनती है, कहा करती है ।

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  5. आपकी समीक्षात्मक आत्मीय टिप्पणी के लिए आभारी हूं जितेन्द्र माथुर जी !!!
    आपको हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹

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  6. आदरणीय / प्रिय,
    कृपया इस लिंक पर पधारें... इसमें आपके दोहे भी शामिल हैं। धन्यवाद 🙏

    दोहाकारों की दृष्टि में वसंत

    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  7. प्रेम

    देह नहीं

    वासना नहीं

    एक संवेग है-

    देह के भीतर

    पर

    देह से परे। बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय भाव

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