Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
ज़रा तुम कहो
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
जो कहा न किसी ने ज़रा तुम कहो।
क्या बनोगे मेरा आसरा, तुम कहो।
मैं तुम्हें मान लूं प्यार में नत गगन
और मुझको क्षितिज की धरा तुम कहो।
एक स्पर्श होता है सावन भरा
क्या नहीं दिख रहा सब हरा, तुम कहो।
कल से दिखने लगे इन्द्रधनुषी सपन
नींद में रंग किसने भरा तुम कहो।
एक मरुभूमि लहरों में बदली है जो
अब उसे सज्जला, निर्झरा तुम कहो।
प्यार में डूब कर जो जिया हो ‘शरद’
वो किसी से भला कब डरा, तुम कहो।
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)
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शब्द-शब्द में प्रबल आकर्ष । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अमृता तन्मय जी 🌹🙏🌹
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०२-२०२१) को 'स्वागत करो नव बसंत को' (चर्चा अंक- ३९६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
प्रिय अनीता सैनी जी,
Deleteमेरी ग़ज़ल को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार...
हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
बहुत सुन्दर शानदार रचना..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह ! बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी 🌹🙏🌹
Deleteएक मरुभूमि लहरों में बदली है जो
ReplyDeleteअब उसे सज्जला, निर्झरा तुम कहो।
बहुत खूब,सादर नमन शरद जी
हार्दिक धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत ख़ूब, बहुत ख़ूब शरद जी ! इस ग़ज़ल का तो हर्फ़-हर्फ़ रूमानियत में भीगा हुआ है । इसे पढ़कर मुझे एक फ़िल्मी गीत याद आ गया - 'कुछ तो हुआ है, कुछ हो गया है; दो-चार दिन से लगता है जैसे सब कुछ अलग है, सब कुछ नया है' ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🙏🌹🙏
Deleteजीवन नौ रस से ही मिल कर बनता है...
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति देहलीवाल जी 🌹🙏🌹
Deleteएक स्पर्श और प्यार में डूबना...वाह बहुत खूब लिखा शरद जी, प्रणाम
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर शरद जी ।
ReplyDeleteअप्रतिम बंध सुंदर शब्द चयन प्यारी रचना।
अभिनव ग़ज़ल।
मैं तुम्हें मान लूं प्यार में नत गगन
ReplyDeleteऔर मुझको क्षितिज की धरा तुम कहो।
एक स्पर्श होता है सावन भरा
क्या नहीं दिख रहा सब हरा, तुम कहो।
एक बेहतरीन कृति। समस्त खूबियों से सुसज्जित। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। ।।।