03 February, 2021

धूप चुरा ली | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | ग़ज़ल संग्रह | पतझड़ में भीग रही लड़की

Dr (Miss) Sharad Singh

ग़ज़ल

धूप चुरा ली

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


उसकी मुट्ठी भरी हुई है, मेरी मुट्ठी  खाली- खाली।

उसने पहले छतरी मांगी, फिर चुपके से धूप चुरा ली।


वो चंदा है  आसमान का,  तारों से  मन बहलायेगा

उसको क्या मालूम पड़ेगा, मावस होती कितनी काली।


कौन पैरवी करता मेरी, वो वक़ील था, वो ही जज था

उसने अपनी ही दलील पर, अपनी ‘पीनल कोड’ बना ली।


इक पत्थर है मेरे आगे, जिसको ईश्वर मान लिया है

कुछ न कुछ तो करना ही था जब दुनिया ने नज़र फिरा ली।


‘शरद’ रात है जितनी लम्बी, आंखें उतनी जागी-जागी

सपनों ने भी जैसे उसी यादों के संग  लगन करा ली।

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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)


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13 comments:

  1. बहुत ही सुंदर सृजन।

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    1. हार्दिक धन्यवाद मनोज जी 🌹🙏🌹

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०४-०२-२०२१) को 'जन्मदिन पर' (चर्चा अंक-३९६७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. प्रिय अनीता सैनी जी,
      मेरी ग़ज़ल को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
      यह मेरे लिए सुखद है। आपको बहुत बहुत धन्यवाद 🌹🙏🌹
      - डॉ शरद सिंह

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  3. सुन्दर और भावपूर्ण अशआरों से सजी लाजवाब ग़ज़ल ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹

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  4. "उसने पहले छतरी मांगी, फिर चुपके से धूप चुरा ली।"

    बहुत खूब शरद जी,सादर नमन आपको

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  5. उसने पहले छतरी मांगी, फिर चुपके से धूप चुरा ली।"
    चलिए छतरी जाने का गम नहीं रहा

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  6. वाह बहुत और भावपूर्ण गजल

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  7. क्या बात है !!! वाह शरद जी ! हर शेर में गहरी बात।

    कौन पैरवी करता मेरी, वो वक़ील था, वो ही जज था

    उसने अपनी ही दलील पर, अपनी ‘पीनल कोड’ बना ली।

    यह तो विशेष अच्छा लगा।

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  8. उम्दा अभिव्यक्ति ।

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