13 June, 2025

कविता | प्रेम में मगन धरती | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

प्रेम में मगन धरती 
     - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

शब्द खो देते हैं
जब अपनी ध्वनियां
ठीक वहीं से 
शुरु होता है
अंतर्मन का कोलाहल
और गूंज उठता है
प्रेम का अनहद नाद
बहने लगता है
अनुभूतियों का लावा
धमनियों में
रक्त की तरह,
हलचल कर उठती हैं
धड़कनों की
टेक्टोनिक प्लेट्स
भूकंप आता है
हृदय की गहराइयों में
लेकिन
दरार आती है
परदृष्टियों की 
उथली सतह पर
किंतु प्रेम में मगन धरती 
डोलती रहती है 
अपनी ही धुन में।
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