सिसकता है प्रेम
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
पार्क के
सूने कोने में
बैठे-बैठे
बेंच से झुक कर
उसने उठाया
एक सूखा पत्ता
अनायास
निरुद्देश्य
बड़ी बारीकी से
देखा उसे
उलट-पलट कर
कौंधा-
यह भी किसी डाल पर
रहा होगा
किसी का प्रेम
हाथ कांपा
गिर गया पत्ता
उंगलियों से सरकता हुआ
कहते हैं प्रेम में
हरियाता हैं जीवन
एक पत्ते की तरह
मुरझाता है
एक पत्ते की तरह
डाल पर होने की खुशी
और बिछड़ने का ग़म
वही जानता है
जो छूट जाता है,
वह नहीं जो छोड़ जाता है
क्या पता है?
एक पार्क के सूने कोने में
बेरंग पुरानी बेंच
पर बैठा प्रेम सिसकता है
आज भी
शायद इसीलिए
सबसे ज्यादा पत्ते
गिरते हैं सूख कर
उसी कोने में।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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बहुत सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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