होती है अनेक
औचित्यहीन चेष्टाएं
कभी चिटकनी खोलना
कभी टिक जाना
दरवाजे से
और फिर अचानक
दरवाजा लगाकर
चिटकनी चढ़ा देना
यूं ही
महसूस करना
कि कोई सामने है
बालों को संवारना
होठों पर
मुस्कुराहट की
रेखा का दौड़ जाना
यही तो है
जागते स्वप्न का है
लालित्य
जो अदृश्य को भी
दृश्य में ढाल कर
खेलता है
चेतना के अवचेतन से
और ठीक उसी समय
इतराता है प्रेम
अपनी अनंत, असीम
सम्मोहन शक्ति पर।
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