प्रेम
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
अगरबत्ती के धुएं-सा
कमरे में
महकता प्रेम
देर तक
देता है
पवित्रता का अहसास,
वहीं
कलुषित भावनाएं
औंधे दिए-सी
ढांक देती है
मन के हर कोने को
अंधेरों से
बस, परखना
कलुष और पवित्रता को
छल को, छद्म को, कपट को
क्योंकि समय है
प्रेम को परखने का
प्रेम भी जिहादी जो होने लगा है।
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परख की सुंदर परिभाषा।
ReplyDeleteबेहतरीन !
ReplyDeleteप्रेम तो सदा पावन है, द्वेष ही प्रेम के वस्त्र पहन कर आता है
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