18 May, 2025

कविता | बिकाऊ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता | बिकाऊ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
बिकाऊ
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रोज बंधती 
रोज टूटती 
है उम्मीद
हाथ खाली हों
तो ख़्वाब सच नहीं होते 
इस बिकाऊ दुनिया में
सब कुछ बिकाऊ है
सबसे ज़्यादा 
इंसान और रिश्ते।
     - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 20 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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