Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
अब तो चाहिए...
-------------------
बहुत थकान होती है -
उधार के रिश्तों को जीते हुए
जैसे ओढ़ी हुई मुस्कान
थका देती है होंठों को
गालों को
और आंखों की कोरों को
हां,
बहुत थकान होती है -
जब रिश्तों को जीते हैं
रिश्तों के बिना
जीत की उम्मींद में
फेंके हुए पासों की तरह।
और थक-हार कर
अकसर सोचता है मन
ये ज़िन्दगी थकी-थकी सी है
अनुबंधों के लिबास तले
ओह, अब तो चाहिए एक सुई या पिन
जिससे उधेड़ा जा सके
इस लिबास की सीवन को।
.... - डॉ. शरद सिंह
#SharadSingh #Poetry #MyPoetry
No comments:
Post a Comment