Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
आओ और पूरा पढ़ो
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मेरी ज़िन्दगी की किताब के पन्ने
पढ़ने तो शुरू किए तुमने
पर छोड़ दिए जल्दी ही
एक पन्ने का कोना मोड़ कर
फिर पढ़ने के लिए
क्या तुम्हें पता है?
पीला पड़ने लगा है काग़ज़
कठोर होने लगे हैं उसके रेशे
टूटने को आतुर है वह कोना मुड़े-मुड़े
फड़फड़ा रहे हैं शेष पन्ने
पढ़े जाने के लिए
अब तक यदि बदल गया हो
तुम्हारे चश्मे नंबर और नज़रिया भी
तो आओ और पूरा पढ़ो
क्योंकि किताबें अधूरी नहीं छोड़ी जातीं।
- डॉ. शरद सिंह
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