Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
और मैं देखती रहूंगी....
मिलोगे तुम मुझे
एक अरसे बाद
यूं ही अचानक
किसी कॉन्फ्रेंस में, सेमिनार में
या किसी मेट्रो में
बेशक़ सोचा था मैंने!
नहीं सोचा था तो ये...
कि मिलोगे तुम किसी चाय-पार्टी में
मेरी पुरानी सहेली के नए हमसफ़र बन कर
और मैं देखती रहूंगी मूक-दर्शक की तरह
अपने अतीत के पन्नों को फाड़ती हुई ...
- डॉ. शरद सिंह
#MyPoetry
#Miss_Sharad_Singh
कि मिलोगे तुम किसी चाय-पार्टी में
मेरी पुरानी सहेली के नए हमसफ़र बन कर
और मैं देखती रहूंगी मूक-दर्शक की तरह
अपने अतीत के पन्नों को फाड़ती हुई ...
- डॉ. शरद सिंह
#MyPoetry
#Miss_Sharad_Singh
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