15 May, 2023

शायरी | हक़ीक़त पता है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


अर्ज़ है -
सितारे,  नज़ूमी,  लकीरें   क्या  जानें,
फ़क़त  वक़्त को ही  हक़ीक़त पता है।
कहां   साथ   होगा,  कहां   छूट  जाए,
किसे फिर भी रिश्तों की क़ीमत पता है।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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