अर्ज़ है -
सितारे, नज़ूमी, लकीरें क्या जानें,
फ़क़त वक़्त को ही हक़ीक़त पता है।
कहां साथ होगा, कहां छूट जाए,
किसे फिर भी रिश्तों की क़ीमत पता है।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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