09 April, 2022

मुक्तक | धूप को धूप जो नहीं लगती | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मुक्तक
पी के पानी भी,प्यास है जगती।
छांह भी आजकल मिले तपती।
क्यों दया  आएगी भला उसको
धूप  को  धूप  जो  नहीं  लगती।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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