कविता
चूहानुमा
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
एक विशेषता है
मनुष्य योनि में हो कर भी
चूहा होना,
वह भी
जहाज का चूहा
जो जहाज के
डूबने की
आशंका में ही
छोड़ देता है
जहाज को
मुझे नहीं लगता
कि कर सकता है ऐसा
मनुष्य
यदि उसके भीतर है
सच्ची मनुष्यता
होने को तो ...
सुकरात को
विष का प्याला
दिया था मनुष्यों ने ही
ब्रूटस भी मनुष्य ही था
जिसने सीजर के पीठ पर
भोंका था छुरा
वह मनुष्य ही था
जिसने
ज़हर पिलाया मीरा को
और परित्याग कराया सीता का
वह मनुष्य ही था
जिसने
बापू गांधी के सीने मेंं
उतार दी गोलियां
और करा दी थीं हत्याएं
जलियांवाला बाग में
अवसरवादिता
लिबास बदलती है
और ढूंढ लेती है
नित नए आका
कभी सत्ता
तो कभी जिस्म
तो कभी ताक़त
कभी ये सभी
ज़्यादातर राजनीति में
लेकिन अब
चूहानुमा
मानवीय नस्ल
राजनीति से
आ गई है
प्रेम में भी,
छोड़ जाती है साथ
संकट की घड़ी में
प्रेम रह जाता है
हो कर आहत
एक
डूबे जहाज की तरह
कृतघ्न चूहा क्या जाने
रच देते हैं प्रेम का इतिहास
टूटे /डूबे जहाज भी
और निभाते हैं प्रेम
अनंत गहराइयों में
अनंत काल तक।
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जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
Nice post thank you Julie
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