"नवभारत" के रविवारीय परिशिष्ट में आज 10.04.2022 को "हमको जीने की आदत है" शीर्षक ग़ज़ल प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़िए...
हार्दिक धन्यवाद #नवभारत 🙏
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ग़ज़ल | हमको जीने की आदत है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नवभारत
अपने सुघड़ उजालों को तुम, रक्खो अपने पास।
हमको जीने की आदत है, काले दिन, उच्छ्वास।
चतुर शिकारी जाल डाल कर बैठा सारी रात
सपनों को भी लूट रहा है, बिना दिए आभास।
बढे़ दाम की तपी सलाखें, दाग रही हैं देह
तिल-तिल मरता मध्मवर्गी, किधर लगाए आस।
बोरी भर के प्रश्न उठाए, कुली सरीखे आज
संसद के दरवाज़े लाखों चेहरे खड़े उदास।
जलता चूल्हा अधहन मांगे, उदर पुकारे कौर
तंग ज़िन्दगी कहती अकसर-‘तेरा काम खलास!’
अनावृष्टि-सी कृपा तुम्हारी, और खेतिहर हम
धीरे-धीरे दरक चला है, धरती-सा विश्वास।
सागर बांध लिया पल्लू में, और पोंछ ली आंख
मुस्कानें फिर ओढ़-बिछा लीं, बना लिया दिन ख़ास।
तड़क-भड़क की इस दुनिया में, करें दिखावा लोग
फिर भी अच्छा लगता हमको, अपना फटा लिबास।
यही धैर्य का गोपन है जो, रहे ‘शरद’ के साथ
आधा खाली मत देखो, जब आधा भरा गिलास।
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#ग़ज़ल #शायरी #डॉसुश्रीशरदसिंह #Ghazal #Shayri #DrMissSharadSingh
#नवभारत
" आधा भरा गिलास...."
ReplyDeleteसुन्दर कथनानुभाव !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 11 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 11 अप्रैल 2022 ) को 'संसद के दरवाज़े लाखों चेहरे खड़े उदास' (चर्चा अंक 4397) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत चुटीली ग़ज़ल !
ReplyDeleteसत्ता के गलियारे में इस ग़ज़ल से तूफ़ान मच सकता है.
यथार्थ का सटीक चित्रण करती सार्थक गजल ।
ReplyDeleteयथार्थ का चित्रण करती रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर एवं सामयिक गजल