ग़ज़ल - दर्द का रंग
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
एक भूखे को दिखे चांद भी रोटी जैसा
दर्द का रंग भी दुनिया में है कैसा-कैसा
उसकी नज़रों में ग़रीबों की जगह कोई नहीं
उसकी नज़रों में हरेक शख़्स है ऐसा- वैसा
वो सियासत की, तिज़ारत की ज़बां कहता है
उसको रिश्तों में भी दिखता है फ़क़त ही पैसा
एक दरिया का किनारों से भला क्या रिश्ता
उसको लम्हा नहीं मिलता है ठहरने जैसा
-----------------
#डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#Ghazal #शेर #Shayri #Poetry
#Literature #SharadSingh #ShayariLovers #ग़ज़ल #दर्द #रंग #दुनिया #चांद #रोटी #सियासत #तिज़ारत #फ़क़त #World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 12 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
भावप्रवण कृति...
ReplyDeleteवो सियासत की, तिज़ारत की ज़बां कहता है
ReplyDeleteउसको रिश्तों में भी दिखता है फ़क़त ही पैसा
एक दरिया का किनारों से भला क्या रिश्ता
उसको लम्हा नहीं मिलता है ठहरने जैसा
सुंदर गजल शरद जी | हरेक शेर में एक कहानी | अनायास ही वर्षा जी की याद मन भिगो गयी |
चारु संरचना !
ReplyDelete