शीत
धूप का पहाड़ा
कठिन हो चला है
शीत की गिनती
उंगलियों पर है
ठिठुरन बन के...
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२५-१२ -२०२१) को
'रिश्तों के बन्धन'(चर्चा अंक -४२८९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
शीत की गिनती उंगलियों में ठिठुरन बन...
ReplyDeleteबहुत खूब।
बहुत बढियां अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
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