रात
- डॉ शरद सिंह
रात
एक शब्द मात्र नहीं
है एक ब्लैक होल
जिसमें
विचार भी
खो बैठते हैं
अपनी परछाई
और खिंचती चली जाती है
तनहाई
उस रबरबैंड की तरह
जो नहीं टूटती
किसी भी हद तक जा कर।
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बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteवाह! सुन्दर
ReplyDeleteमन को बींधती रचना।
ReplyDeleteरात की नीरवता का बेहद मार्मिक चित्रण कम शब्दों में।
सस्नेह।
बहुत ही बेहतरीन सृजन आदरणीय मैम
ReplyDeleteअन्धकूप-पारिभाषित !
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