इस तरफ़ क्या देखते हो, तुम सवाली की तरह।
ज़िन्दगी आहत् खड़ी है पांचाली की तरह।
धर्म से इंसानियत का, न कटे रिश्ता कभी
धार्मिक उन्माद होता है मवाली की तरह।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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