और नहीं, अब और नहीं ❗️
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
⚫️ एक बहादुर बेटी फिर से हमने खोई है।
देखो सारी क़ायनात भी कैसे रोई है।
❗️कितनी बेटी, कितनी बहनें और खोएंगे हम?
निर्मम हत्यारों को कब तक और ढोएंंगे हम?
क्या ज़मीर के साथ चेतना गहरे सोई है।
❗️साथ हमारे, देश हमारा न्याय मांगता है
निर्भय हो माहौल सदा बस यही चाहता है
हमने अपनी आंख अभी तक बहुत भिगोई है।
❗️और नहीं, अब और नहीं, एक हादसा और नहीं
सहन न होगा हमसे देखो, एक हादसा और नहीं
विपदायें तो हमने अब तक ढेरों ढोईं हैं।
और नहीं, अब और नहीं, एक हादसा और नहीं.....
और नहीं, अब और नहीं, एक हादसा और नहीं.....
और नहीं, अब और नहीं, एक हादसा और नहीं.....
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