18 January, 2023

शायरी | ग़ज़ल | सीख लिया | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है -
दिल बहलाना सीख लिया।
ज़ख़्म छिपाना सीख लिया।
मुस्कानों का पहन मुखौटा
हंसना,  गाना  सीख लिया।
अपने  ही  ख़्वाबों  से  मैंने
अब  कतराना सीख लिया।
लावारिस  बच्चे  जब देखे
ख़ैर  मनाना  सीख  लिया।
'शरद' सहारा है यादों का
यही  बहाना  सीख  लिया।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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