कविता
जीने के लिए
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
मालूम है
वह
नहीं मिलेगा
कभी,
लेकिन क्या
सिर्फ़ इतने पर
आकाश के तारे को
देखना छोड़ देते हैं
लोग?
नहीं न !
कुछ भ्रम ज़रूरी हैं जीने के लिए !!
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