अर्ज़ है -
शायरी
वो क्या समझेगा दिल को, जज़्बातों को
जिसने दौलत, शोहरत को *तरजीह दिया
जीने का तो हुनर वही बतलायेगा
जिसने शाम-ओ-सहर हमेशा ज़हर पिया
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
(*तरजीह = प्राथमिकता)
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