03 January, 2023

कविता | नहीं मालूम था | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता 
नहीं मालूम था
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मुझे नहीं मालूम था
कि धूप 
मेरे हाथ से 
फिसल कर 
शीत में 
बदल जाएगी, 
नहीं तो 
मैं सूरज को 
मुट्ठी में 
भींच कर रखती।
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